Toggle navigation
English Interface
संग्रह से कोई भी रचना
काव्य विभाग
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
मुक्तक
प्रतिध्वनि
काव्य लेख
सहयोग दें
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
चाँदनी जगाती है
आजकल तमाम रात
चाँदनी जगाती है|
मुँह पर दे दे छींटे
अधखुले झरोखे से
अन्दर आ जाती है
दबे पाँव धोखे से
माथा छू
निंदिया उचटाती है
बाहर ले जाती है
घण्टों बतियाती है
ठण्डी-ठण्डी छत पर
लिपट-लिपट जाती है
विह्वल मदमाती है
बावरिया बिना बात|
आजकल तमाम रात
चाँदनी जगती है|
-
धर्मवीर भारती
पुस्तक "पाँच जोड़ बाँसुरी" (सम्पादक: चंद्रदेव सिंह - भारतीय ज्ञानपीठ) से
काव्यालय पर प्रकाशित: 13 Oct 2016
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।
₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
धर्मवीर भारती
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ
कनुप्रिया (अंश 1) आम्र-बौर का गीत
कनुप्रिया (अंश 2) विप्रलब्धा
कनुप्रिया (अंश 3) उसी आम के नीचे
कनुप्रिया (अंश 4) समुद्र-स्वप्न
कनुप्रिया (अंश 5) समापन
क्योंकि
गुनाह का गीत
चाँदनी जगाती है
शाम: दो मनःस्थितियाँ
इस महीने :
'अन्त'
दिव्या ओंकारी ’गरिमा’
झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।
झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।
तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना
| काव्य विभाग:
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
|
प्रतिध्वनि
|
काव्य लेख
सम्पर्क करें
|
हमारा परिचय
सहयोग दें