अप्रतिम कविताएँ
यादगारों के साये
जब कभी तेरी याद आती है
चांदनी में नहा के आती है।
भीग जाते हैं आँख में सपने
शब में शबनम बहा के आती है।

मेरी तनहाई के तसव्वुर में
तेरी तसवीर उभर आती है।
तू नहीं है तो तेरी याद सही
ज़िन्दगी कुछ तो संवर जाती है।

जब बहारों का ज़िक्र आता है
मेरे माज़ी की दास्तानों में
तब तेरे फूल से तबस्सुम का
रंग भरता है आसमानों में।

तू कहीं दूर उफ़क से चल कर
मेरे ख्यालों में उतर आती है।
मेरे वीरान बियाबानों में
प्यार बन कर के बिखर जाती है।

तू किसी पंखरी के दामन पर
ओस की तरह झिलमिलाती है।
मेरी रातों की हसरतें बन कर
तू सितारों में टिमटिमाती है।

वक्ते रुख़सत की बेबसी ऐसी
आँख से आरज़ू अयाँ न हुई।
दिल से आई थी बात होठों तक
बेज़ुबानी मगर ज़ुबां न हुई।

एक लमहे के दर्द को लेकर
कितनी सदियां उदास रहती हैं।
दूरियां जो कभी नहीं मिटतीं
मेरी मंज़िल के पास रहती हैं।

रात आई तो बेकली लेकर
सहर आई तो बेकरार आई।
चन्द उलझे हुये से अफ़साने
ज़िन्दगी और कुछ नहीं लाई।

चश्मे पुरनम बही, बही, न बही।
ज़िन्दगी है, रही, रही, न रही।
तुम तो कह दो जो तुमको कहना था
मेरा क्या है कही, कही, न कही।
- विनोद तिवारी
काव्य संकलन समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न

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इस महीने :
'कमरे में धूप'
कुंवर नारायण


हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही,
दीवारें सुनती रहीं।
धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी
किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।

सहसा किसी बात पर बिगड़ कर
हवा ने दरवाज़े को तड़ से
एक थप्पड़ जड़ दिया !

खिड़कियाँ गरज उठीं,
अख़बार उठ कर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'खिड़की और किरण'
नूपुर अशोक


हर रोज़ की तरह
रोशनी की किरण
आज भी भागती हुई आई
उस कमरे में फुदकने के लिए
मेज़ के टुकड़े करने के लिए
पलंग पर सो रहने के लिए

भागती हुई उस किरण ने
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'किरण'
सियाराम शरण गुप्त


ज्ञात नहीं जानें किस द्वार से
कौन से प्रकार से,
मेरे गृहकक्ष में,
दुस्तर-तिमिरदुर्ग-दुर्गम-विपक्ष में-
उज्ज्वल प्रभामयी
एकाएक कोमल किरण एक आ गयी।
बीच से अँधेरे के
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'रोशनी'
मधुप मोहता


रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से, रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक सी दिया करती है।

मैं खोल देता हूँ ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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