अप्रतिम कविताएँ

चीख
रात हो जाती है जब, घनी स्याह
तूफ़ान समुन्दर में उठते हैं अथाह
उस पहर जब
जिन्दा भी मुर्दों की श्रेणी में आते हैं
मरहम से सपने नींद सजाते हैं
महसूस होता है एक साया
जिस्म पर हाथ फेरता
चूड़ियाँ तब भी टूटती हैं
दर्द की वो भी पराकाष्ठा है
मगर चीख जिस्म से
बाहर नही निकलती
क्योंकि -
उसके पास "सर्टिफिकेट" है
- पारुल 'पंखुरी'
Parul 'Pankhuri'
Email : [email protected]
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 चीख
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शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
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दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
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आदत बुरी है यह
..

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..

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बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी
..

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