अप्रतिम कविताएँ
फसाना
रहो अपने दिल में
उड़ो आसमां तक
ज़मीं से आसमां तक
तेरा फसाना होगा

न जाने क्यूँ
न उड़ता हूँ मैं
न रहता हूँ दिल में
फिर भी
हसरत है कि
फसाना बन जाऊँ

फसाने बहुत हुए
सदियों से
कुछ तुफां
से आये
और बिखर गये
कुछ हलचलें
दिखातीं हैं
सतहों पर
न जाने किस
दबे तुफां की
तसवीर हैं ये

दिलों, आसमां औ जमीं
की तारीख
इन फसानों
में सिमटी
बिखरी है

कुछ बनने की
ख्वाहिश
कुछ गढ़ने
की ज़रूरत

मैं एक फसाना हूँ
एक कशिश
एक धड़कन
हूँ दिल की

जिसकी आवाज
सदियों से
चंद फसानों में
निरंतर
कल कल
नदी के नाद
सी
थिरकती आयी
है।
- रणजीत मुरारका
Ranjeet Murarka
Email : [email protected]

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लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

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