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सुकूने-दिल
तरस जाती हैं सुनने को
किसी की...
न जाने कब किसी से
क्यूँ कहा हमने
सुकूने-दिल की बातें हैं
वो यादें तुम्हारी
कि तुम्हारे दिल
में होगी कभी
चर्चा हमारी भी
-
रणजीत मुरारका
काव्यालय को प्राप्त: 27 Mar 2020. काव्यालय पर प्रकाशित: 24 Jul 2020
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फसाना
रिश्ते तूफां से
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'हर मकान बूढ़ा होता'
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साधो, सच है
जैसे मानुष
धीरे-धीरे हर मकान भी बूढ़ा होता
देह घरों की थक जाती है
बस जाता भीतर अँधियारा
उसके हिरदय नेह-सिंधु जो
वह भी हो जाता है खारा
घर में
जो देवा बसता है
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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'अधूरी'
प्रिया एन. अइयर
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इक सिसकी सी
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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