अप्रतिम कविताएँ
मित्र सहेजो
मित्र सहेजो
हम जंगल से धूप-छाँव लेकर आये हैं

पगडण्डी पर वे बैठी थीं पाँव पसारे
पेड़ों ने थे फगुनाहट के बोल उचारे

उन्हें याद थे
ऋषियों ने जो मंत्र सूर्यकुल के गाये हैं

वनकन्या की हँसी - नेह उसके हिरदय का
उन्हें सँजोओ - छँट जायेगा धुंध समय का

इन्हें न टेरो
घिरे शहर में धुएँ-धुंध के जो साये हैं

आधी रातों के निर्णय हैं सभागार में
टँगी हुईं सूरज की छवियाँ राजद्वार में

उन्हें दिशा दो
जो शाहों के संवादों से भरमाये है



- कुमार रवीन्द्र

काव्यालय को प्राप्त: 16 Jan 2018. काव्यालय पर प्रकाशित: 11 Jan 2019

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
कुमार रवीन्द्र
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 अभी होने दो समय को
 काश हम पगडंडियाँ होते
 तैर रहा इतिहास नदी में
 बक्सों में यादें
 मित्र सहेजो
 सुन सुलक्षणा
 हर मकान बूढ़ा होता
इस महीने :
'अमरत्व'
क्लेर हार्नर


कब्र पे मेरी बहा ना आँसू
हूँ वहाँ नहीं मैं, सोई ना हूँ।

झोंके हजारों हवाओं की मैं
चमक हीरों-सी हिमकणों की मैं
शरद की गिरती फुहारों में हूँ
फसलों पर पड़ती...
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website