दिसंबर की डाल पर खिलकर
चुपचाप मुरझा चुके हैं
ग्यारह फूल
मधुमक्खियाँ आईं
खेले भँवरे भी उनकी गोद में,
कितना लूटा किसने
नहीं जानते
बीत चुके ग्यारह फूल
बारहवाँ फूल खिला है संकोच में
वह जानता है
उन फूलों के अवदान को
अपने प्रति
हवाएँ नाच-नाच कर सोख रही हैं
फूल का गीलापन,
फिर भी बाकी है मुस्कान फूल में
जैसे डाल पर सोई चिड़िया के परों में
बाकी बचा रहता है
उड़ान के साथ
थोड़ा-सा आसमान भी।
काव्यालय को प्राप्त: 8 Dec 2021.
काव्यालय पर प्रकाशित: 17 Dec 2021