अप्रतिम कविताएँ
भीतर शिखरों पर रहना है
ख़्वाब देखकर सच करना है
ऊपर ही ऊपर चढ़ना है,
जीवन वृहत्त कैनवास है
सुंदर सहज रंग भरना है!

साथ चल रहा कोई निशदिन
हो अर्पित उसको कहना है,
इक विराट कुटुंब है दुनिया
सबसे मिलजुल कर रहना है!

ताजी-खिली रहे मन कलिका
नदिया सा हर क्षण बहना है,
घाटी, पर्वत, घर या बीहड़
भीतर शिखरों पर रहना है!

वर्तुल में ही बहते-बहते
मुक्ति का सम्मन पढ़ना है,
फेंक भूत का गठ्ठर सिर से
हर पल का स्वागत करना है!

जुड़े ऊर्जा से नित रहकर
अंतर घट में सुख भरना है,
छलक-छलक जाएगा जब वह
निर्मल निर्झर सा झरना है!
- अनिता निहलानी
वृहत्त : बहुत बड़ा। वर्तुल : गोल आकार। सम्मन : आह्वान पत्र। भूत : बीता हुआ

काव्यालय को प्राप्त: 12 Jul 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 2 Sep 2022

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 एक रहस्य
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 भीतर शिखरों पर रहना है
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'कमरे में धूप'
कुंवर नारायण


हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही,
दीवारें सुनती रहीं।
धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी
किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।

सहसा किसी बात पर बिगड़ कर
हवा ने दरवाज़े को तड़ से
एक थप्पड़ जड़ दिया !

खिड़कियाँ गरज उठीं,
अख़बार उठ कर
..

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हर रोज़ की तरह
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..

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