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अस्तित्व
मैनें कई बार
कोशिश की है
तुम से दूर जानें की,
लेकिन
मीलों चलनें के बाद
जब मुड़ कर देखता हूँ
तो तुम्हें
उतना ही करीब पाता
हूँ |
तुम्हारे इर्द
गिर्द
वृत्त की
परिधि बन कर रह गया
हूँ मैं ।
-
अनूप भार्गव
Anoop Bhargava
email:
[email protected]
Anoop Bhargava
email:
[email protected]
अनूप भार्गव
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ
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अस्तित्व
प्रतीक्षा
यूँ ही ...
रिश्ते
हाइकु
इस महीने :
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साधो, सच है
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धीरे-धीरे हर मकान भी बूढ़ा होता
देह घरों की थक जाती है
बस जाता भीतर अँधियारा
उसके हिरदय नेह-सिंधु जो
वह भी हो जाता है खारा
घर में
जो देवा बसता है
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'अधूरी'
प्रिया एन. अइयर
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..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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