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आज नदी बिलकुल उदास थी
आज नदी बिलकुल उदास थी।
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर -
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसे नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।
-
केदारनाथ अग्रवाल
काव्यपाठ:
वाणी मुरारका
विषय:
प्रकृति (41)
नदी (3)
उदासी (19)
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पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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