अप्रतिम कविताएँ
प्रिय चिरन्तन है सजनि
       प्रिय चिरन्तन है सजनि,
              क्षण क्षण नवीन सुहागिनी मैं!

श्वास में मुझको छिपा कर वह असीम विशाल चिर घन,
शून्य में जब छा गया उसकी सजीली साध-सा बन,
       छिप कहाँ उसमें सकी
              बुझ-बुझ जली चल दामिनी मैं!

छाँह को उसकी सजनि नव आवरण अपना बना कर,
धूलि में निज अश्रु बोने मैं पहर सूने बिता कर,
       प्रात में हँस छिप गई
              ले छलकते दृग यामिनी मैं!

मिलन-मन्दिर में उठा दूँ जो सुमुख से सजल गुण्ठन,
मैं मिटूँ प्रिय में मिटा ज्यों तप्त सिकता में सलिल-कण,
       सजनि मधुर निजत्व दे
              कैसे मिलूँ अभिमानिनी मैं!

दीप-सी युग-युग जलूँ पर वह सुभग इतना बता दे,
फूँक से उसकी बुझूँ तब क्षार ही मेरा पता दे!
       वह रहे आराध्य चिन्मय
              मृण्मयी अनुरागिनी मैं!

सजल सीमित पुतलियाँ पर चित्र अमिट असीम का वह,
चाह वह अनन्त बसती प्राण किन्तु ससीम सा यह,
       रज-कणों में खेलती किस
              विरज विधु की चाँदनी मैं?
- महादेवी वर्मा
विषय:
प्रेम (60)
भक्ति और प्रार्थना (30)
अध्यात्म दर्शन (34)

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जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
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चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
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हँसें
मुस्कुराऐं
..

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इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

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इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


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गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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