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ओस जितनी नमी
एक नाप जितनी ख़लिश
ख़लती नहीं
चलती है
जैसे ओस की बूंद जितना
सीलापन
जैसे नींद के बाद वाली
हलकी सी थकन --
मुझे नहीं खोनी
अपनी सारी शिकन।
कुछ लकीरें मेरी मुस्कराहट की हैं
और कुछ खोरों की ज़रूरी नमी
तुम देख लेना
कब, कैसे, कितना होना है
बस कम से कम
मेरी कविता जितने रहना।
-
जया प्रसाद
काव्यालय को प्राप्त: 30 Oct 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 25 Nov 2022
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किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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