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नित्या
सुनो नित्या!
मत भूलो कि
केवल भूमिजा नहीं
यज्ञसेना भी हो तुम
सुलग रही होगी
अब भी
भीतर कहीं
अंजुरि भर अग्नि
आई थी जो
संग तुम्हारे
अंग तुम्हारे
प्रज्वलित करो उसे!
नहीं हुआ है जन्म तुम्हारा
कि करो आत्मसात
सारा दुराचार
कि समा जाओ मातृ अंक में
सुन कोई आरोप निराधार
जानो!
कि लाया गया
कि बुलाया गया
तुम्हें,
मिटाने को
अनवरत बढ़ता
अनाचार,
बार बार
-
सुदर्शन शर्मा
Sudarshan Sharma
Email:
[email protected]
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दिव्या ओंकारी ’गरिमा’
झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।
झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।
तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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