अप्रतिम कविताएँ
फसाना
रहो अपने दिल में
उड़ो आसमां तक
ज़मीं से आसमां तक
तेरा फसाना होगा

न जाने क्यूँ
न उड़ता हूँ मैं
न रहता हूँ दिल में
फिर भी
हसरत है कि
फसाना बन जाऊँ

फसाने बहुत हुए
सदियों से
कुछ तुफां
से आये
और बिखर गये
कुछ हलचलें
दिखातीं हैं
सतहों पर
न जाने किस
दबे तुफां की
तसवीर हैं ये

दिलों, आसमां औ जमीं
की तारीख
इन फसानों
में सिमटी
बिखरी है

कुछ बनने की
ख्वाहिश
कुछ गढ़ने
की ज़रूरत

मैं एक फसाना हूँ
एक कशिश
एक धड़कन
हूँ दिल की

जिसकी आवाज
सदियों से
चंद फसानों में
निरंतर
कल कल
नदी के नाद
सी
थिरकती आयी
है।
- रणजीत मुरारका
Ranjeet Murarka
Email : [email protected]
विषय:
अन्तर्मन (14)

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बेचैनियों का कभी
..

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1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है!
..

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