अप्रतिम कविताएँ
अविद्या और विद्या
अन्धतमः प्र विशन्ति येऽविद्यामुपासते ।
ततो भूयऽइव ते तमो यऽउ विद्यायां रताः ।।
(यजु 40/12)
मात्र अविद्या की उपासना जो करते हैं,
घनान्धतम में वे प्रवेश करते रहते हैं।
उनसे अधिक अंधेरे, उनको घेरे रहते,
उपासना विद्या की केवल जो करते हैं !
अन्यदेवाहुर्विद्यायाऽ अन्यदाहुरविद्यायाः।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचाक्षिरे।।
(यजु 49/13)
विद्या और अविद्या पथ के श्रेय भिन्न हैं,
कर्म भिन्न, परिणाम भिन्न हैं, प्रेय भिन्न हैं।
इतना ही हम धीरों से सुनते आये हैं,
तरह-तरह से वह यह ही कहते आये हैं!
- अज्ञात
- अनुवाद : अमृत खरे
पुस्तक 'श्रुतिछंदा' से

काव्यालय को प्राप्त: 25 Sep 2023. काव्यालय पर प्रकाशित: 8 Dec 2023

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हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही,
दीवारें सुनती रहीं।
धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी
किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।

सहसा किसी बात पर बिगड़ कर
हवा ने दरवाज़े को तड़ से
एक थप्पड़ जड़ दिया !

खिड़कियाँ गरज उठीं,
अख़बार उठ कर
..

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हर रोज़ की तरह
रोशनी की किरण
आज भी भागती हुई आई
उस कमरे में फुदकने के लिए
मेज़ के टुकड़े करने के लिए
पलंग पर सो रहने के लिए

भागती हुई उस किरण ने
..

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ज्ञात नहीं जानें किस द्वार से
कौन से प्रकार से,
मेरे गृहकक्ष में,
दुस्तर-तिमिरदुर्ग-दुर्गम-विपक्ष में-
उज्ज्वल प्रभामयी
एकाएक कोमल किरण एक आ गयी।
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..

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रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से, रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक सी दिया करती है।

मैं खोल देता हूँ ..

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