बहुत ही अनमनी है सांझ, कैसे तो बिताएं हम!
अचानक ही
छलक आये नयन कुछ
कह रहे, देखो,
अचानक भर उठे
स्वर, मन, हृदय
अवसाद से, देखो,
भला क्या-क्या छुपाओ तुम, भला क्या-क्या छुपाएं हम !
घनेरा सुरमई आकाश
भीतर तक
उतर आया,
किसी शरबिद्ध पंछी सा
अकिंचन मन
है घबराया,
चलो कुछ गुनगुनाओ तुम, चलो कुछ गुनगुनाएं हम !
बहुत ही अनमनी है सांझ, कैसे तो बिताएं हम !!
काव्यालय को प्राप्त: 14 May 2019.
काव्यालय पर प्रकाशित: 14 Feb 2020