अप्रतिम कविताएँ
काश़
ना समझ सका
मैं खुद जिसको
अधखुला राज़
अनकही बात
मैं काश़ तुम्हे समझा पाता

तेरी नज़रों के
दो सवाल
दो प्रश्नचिन्ह
जिनके जवाब
मैं काश़ कभी लौटा पाता

कच्चे धागे
इन सपनों के
उलझे उलझे
सुलगे सुलगे
मैं काश़ कभी सुलझा पाता

जुगनू बिखराती
चाँद रात
हाथों में हाथ
दो पल का साथ
मैं काश कभी दोहरा पाता

ख़्वाबों से महकी
सरज़मीं
वो दिलनशीं
कितनी हसीं
मैं काश तुम्हे दिखला पाता

वो गया मोड़
हम साथ छोड़
हैं अलग अलग
इक कड़वा सच
मैं काश इसे झुठला पाता
- कमलेश पाण्डे 'शज़र'
Kamlesh Pandey
Email : [email protected]
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 काश़
 यूँ छेड़ कर धुन
इस महीने :
'दिव्य'
गेटे


अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

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राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

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