इंतज़ार सयाना हो गया
हर काम निबटाता है सलीक़े से
हर बात में ले आता है तुम्हें
जब-तब वादों की दे कर दुहाई
और जब भी डगमगाता है भरोसा
मन्नत के धागों में जोड़ लेता है
.... एक और ज़िद्दी गाँठ
इंतज़ार सयाना हो गया
हो जाता है बूढ़ा हर शाम थोड़ा
चल पड़ता है फिर .... हर सुबह
नयी झुर्रियाँ समेटता
नज़रों में उतरते मोतियाबिंद से बेपरवाह
जा खड़ा होता है
उनींदे रास्तों पर मील के पत्थर सा
क्यूंकि इंतज़ार सयाना हो गया
काव्यालय को प्राप्त: 6 Nov 2017.
काव्यालय पर प्रकाशित: 7 Jul 2023