अप्रतिम कविताएँ

इंतज़ार सयाना हो गया
इंतज़ार सयाना हो गया
हर काम निबटाता है सलीक़े से
हर बात में ले आता है तुम्हें
जब-तब वादों की दे कर दुहाई
और जब भी डगमगाता है भरोसा
मन्नत के धागों में जोड़ लेता है
.... एक और ज़िद्दी गाँठ
इंतज़ार सयाना हो गया
हो जाता है बूढ़ा हर शाम थोड़ा
चल पड़ता है फिर .... हर सुबह
नयी झुर्रियाँ समेटता
नज़रों में उतरते मोतियाबिंद से बेपरवाह
जा खड़ा होता है
उनींदे रास्तों पर मील के पत्थर सा
क्यूंकि इंतज़ार सयाना हो गया
- शिखा गुप्ता
काव्यपाठ: शिखा गुप्ता
Shikha Gupta
Email : [email protected]

काव्यालय को प्राप्त: 6 Nov 2017. काव्यालय पर प्रकाशित: 7 Jul 2023

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इस महीने :
'त्र्यम्बक प्रभु को भजें'
अज्ञात


त्र्यम्बक प्रभु को भजे निरन्तर !
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लता-बन्ध से टूटे, छूटे खरबूजे से
जब हम टूटें, जब हम छूटें मृत्यु-बन्ध से,
पृथक न हों प्रभु के अमृत से !
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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कवि! मेरा मन पावन कर दो!

हे! रसधार
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हे! आनन्द
लुटाने वाले,
..

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इन दर्पणों में देखा तो
~ वाणी मुरारका

वर्षों पहले यहाँ कुछ लोग रहते थे। उन्होंने कुछ कृतियां रचीं, जिन्हें 'वेद' कहते हैं। वेद हमारी धरोहर हैं, पर उनके विषय में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानती हूँ। जो जानती हूँ वह शून्य के बराबर है।

फिर एक व्यक्ति ने, अमृत खरे ने, मेरे सामने कुछ दर्पण खड़े कर दिए। उन दर्पणों में वेद की कृतियाँ एक अलग रूप में दिखती हैं, जिसे ग्रहण कर सकती हूँ, जो अपने में सरस और कोमल हैं। पर उससे भी महत्वपूर्ण, अमृत खरे ने जो दर्पण खड़े किए हैं उनमें मैं उन लोगों को देख सकती हूँ जो कोटि-कोटि वर्षों पहले यहाँ रहा करते थे। ये दर्पण वेद की ऋचाओं के काव्यानुवाद हैं, और इनका संकलन है 'श्रुतिछंदा'।

"श्रुतिछंदा" में मुझे दिखती है ...

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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