अप्रतिम कविताएँ
उदासी खूबसूरत
अम्बुधि लहरों के शोर में
असीम शान्ति की अनुभूति लिए,
अपनी लालिमा के ज़ोर से
अम्बर के साथ – लाल सागर को किए,
विहगों के होड़ को
घर लौट जाने का संदेसा दिए,
दिनभर की भाग दौड़ को
संध्या में थक जाने के लिए
दूर क्षितिज के मोड़ पे
सूरज को डूब जाते देखा!

तब, तट पे बैठे
इस दृश्य को देखते
नम आँखें लिए
बाजुओं को आजानुओं से टेकते
इस व्याकुल मन में
एक विचार आया!
किंतु उस उलझन का,
परामर्श आज भी नही पाया!
की जब विदाई में एक दुल्हन रोती है,
जब बिन बरखा-दिन में धुप खोती है,
जब शाम अंधेरे में सोती है,
तब, क्या उदासी खुबसूरत नही होती है?
- दीपक कुमार
अम्बुधि : सागर । आजानु : घुटना
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इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
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जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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