अप्रतिम कविताएँ

तुम्हारा होना
ये रंग
जो तुम्हारी हंसी से
बिखरे पड़े हैं धरा पर
तुम्हारे प्रेम की ऊष्मा पाकर ही
वाष्पित हुए
और इंद्रधनुष हो गया सतरंगी

तुम्हारी खुशियों से ही
तय किये गए
धरती और आकाश की सम्पूर्णता के समीकरण,
अलसुबह
तुम्हारे चेहरे के नूर से ही
खिलते रहे फूल

जब नहीं रहोगी तुम
बेरंग हो जायेगी दुनियाँ
ख़त्म हो जायेंगी पृथ्वी पर
जीवन की सारी संभावनाएं |
- भानु प्रकाश रघुवंशी
वाष्पित= भाप बन जाना; समीकरण= equation इकवेशन

काव्यालय को प्राप्त: 31 Jan 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 11 Feb 2022

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इस महीने :
'कमरे में धूप'
कुंवर नारायण


हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही,
दीवारें सुनती रहीं।
धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी
किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।

सहसा किसी बात पर बिगड़ कर
हवा ने दरवाज़े को तड़ से
एक थप्पड़ जड़ दिया !

खिड़कियाँ गरज उठीं,
अख़बार उठ कर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'खिड़की और किरण'
नूपुर अशोक


हर रोज़ की तरह
रोशनी की किरण
आज भी भागती हुई आई
उस कमरे में फुदकने के लिए
मेज़ के टुकड़े करने के लिए
पलंग पर सो रहने के लिए

भागती हुई उस किरण ने
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'किरण'
सियाराम शरण गुप्त


ज्ञात नहीं जानें किस द्वार से
कौन से प्रकार से,
मेरे गृहकक्ष में,
दुस्तर-तिमिरदुर्ग-दुर्गम-विपक्ष में-
उज्ज्वल प्रभामयी
एकाएक कोमल किरण एक आ गयी।
बीच से अँधेरे के
..

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इस महीने :
'रोशनी'
मधुप मोहता


रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से, रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक सी दिया करती है।

मैं खोल देता हूँ ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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