अप्रतिम कविताएँ
मेरा अपना चाँद
चीड़ में अटका चाँद
बूँद बूँद टपका रहता है
औंधा लटका चाँद।

दुनियाभर में इसके डेरे
पखवाड़े पखवाड़े फेरे
अबकी घर मेरे रुक जाए
रस्ता भटका चाँद।

सँझा से सँवलाई छाया
बरखा में बिसराई माया
देखो कितना दु:ख सहता है
मेरा अपना चाँद।

जी करता है गले लगा लूँ
कोट के अंदर कहीं छुपा लूँ
ठंड से ठिठुर गया बेचारा
दूज का दुबला चाँद।

यारो थोड़ा हाथ लगाओ
परकोटों के पार उठाओ
गिरकर फिर से टूट न जाये
गिरता पड़ता चाँद।

मीठी बतियाँ बाँके बैन
मेरी छत पर सारी रैन
जाने किससे करता रहता
नैन मटक्का चाँद।

मन में इत्ते सपनों वाला
मद्धम मद्धम क़दमों वाला
मेरे दायें बायें चलता
मेला तकता चाँद।

उजलेपन की भाषा देखो
निखरे मन की आशा देखो
रात के रूमालों पर रौशन
कविता लिखता चाँद।

"चन्दा" उसको कहता था मैं
दिल को हारा रहता था मैं
उसके बिन किरकिरी के जैसा
आँख को खटका चाँद।

चीड़ में अटका चाँद।
- सुशोभित
[email protected]
विषय:
विरह (13)
चाँद (7)
रात (5)

काव्यालय को प्राप्त: 27 Nov 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 20 Jan 2023

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तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
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तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
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तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

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'कुछ प्रेम कविताएँ'
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1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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'स्वतंत्रता का दीपक'
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घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है!
..

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