अप्रतिम कविताएँ
आए दिन अलावों के
आए दिन
जलते हुए,अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

निष्ठुर ऋत
जिद्दी ज्वालाएं
देखें मंज़र
शीत समंदर में
भावों की
तिरती हुई नावों के !!

ओढ़ दुशाला
चहका चाँद
गिनता रहा निशां
रात भर
चाँदनी के
पांवों के !!!
- इन्दिरा किसलय
विषय:
सर्दी (5)

काव्यालय को प्राप्त: 13 Jan 2023. काव्यालय पर प्रकाशित: 22 Nov 2024

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'हादसे के बाद की दीपावली'
गीता दूबे


रौशनी से नहाए इस शहर में
खुशियों की लड़ियाँ जगमगाती हैं
चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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