अप्रतिम कविताएँ
घर आवो जी सजन मिठ बोला
घर आवो जी सजन मिठ बोला।
तेरे खातर सब कुछ छोड्या, काजर, तेल तमोला॥
जो नहिं आवै रैन बिहावै, छिन माशा छिन तोला।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, कर धर रही कपोला॥
- मीराबाई

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
मीराबाई
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 घर आवो जी सजन मिठ बोला
 तोसों लाग्यो नेह रे प्यारे
 पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे
 पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो
 मेरे तो गिरिधर गोपाल
 श्याम मोसूँ ऐंडो डोलै हो
इस महीने :
'अमरत्व'
क्लेर हार्नर


कब्र पे मेरी बहा ना आँसू
हूँ वहाँ नहीं मैं, सोई ना हूँ।

झोंके हजारों हवाओं की मैं
चमक हीरों-सी हिमकणों की मैं
शरद की गिरती फुहारों में हूँ
फसलों पर पड़ती...
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website