अचानक
फिर नदी अचानक सिहर उठी
यह कौन छू गया साझं ढले
संयम से बहते ही रहना
जिसके स्वभाव में शामिल था
दिन-रात कटावों के घर में
ढहना भी जिसका लाजिम था
वह नदी अचानक लहर उठी
यह कौन छू गया सांझ ढले
छू लिया किसी सुधि के क्षण ने
या छंदभरी पुरवाई ने
या फिर गहराते सावन ने
या गंधमई अमराई ने
अलसायी धारा सँवर उठीं
यह कौन छू गया साँझ ढले
कैसा फूटा इसके जल में -
सरगम, किसने संगीत रचा
मिलना मुश्किल जिसका जग में
कैसे इसमें वह गीत बचा
सोते पानी में भँवर उठी
यह कौन छू गया साँझ ढले
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विनोद श्रीवास्तव
Poet's Address: 75-C, Anandnagar Chakeri Road, Kanpur-1
Ref: Naye Purane, April,1998
इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला
कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।
औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।
आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
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