अप्रतिम कविताएँ
तस्वीर की लडकी बोलती है
जिस रात
अँधेरा गहराता है
चाँदनी पिघलती है
मैं हौले कदमों से
कैनवस की कैद से
बाहर निकलती हूँ

बालों को झटक कर खोलती हूँ
और उन घनेरी ज़ुल्फों में
टाँकती हूँ जगमगाते सितारे

मेरे बदन से फूटती है खुश्बू
हज़ारों चँपई फूल खिलते हैं
आँखों के कोरों से कोई
सहेजा हुआ सपना
टपक जाता है

मदहोश हवा में
अनजानी धुन पर
अनजानी लय से
पैर थिरक जाते हैं
रात भर मैं झूमती हूँ।

पौ फटते ही
बालों को समेटती हूँ
जूड़े में...
बदन की खुशबू को ढंकती हूँ
चादर से,
पलकों को झपकाती हूँ
और कोई अधूरा सपना
फिर कैद हो जाता है
आँखों में।
एक कदम आगे बढ़ाती हूँ
और कैनवस की तस्वीर वाली
लड़की बन जाती हूँ।

तुम आते हो
तस्वीर के आगे ठिठकते हो
दो पल,
फिर दूसरी तस्वीर की ओर
बढ़ जाते हो...

मेरे होंठ बेबस, कैद हैं
कैनवस में
बोलना चाहती हूँ... पर...

क्या तुम नहीं देख पाते
तस्वीर की लड़की के
होंठों की ज़रा सी टेढ़ी
मुस्कुराहट
और नीचे सफेद फर्श पर
गिरे दो चँपई फूल ?
- प्रत्यक्षा
Pratyaksha
email: [email protected]
विषय:
सृजन (9)
कल्पना (4)

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अन्य राशि
इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
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जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
..

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इस महीने :
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कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

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जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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