अप्रतिम कविताएँ
स्वीकार करो यह प्रार्थना
हे प्रभु अब हिम्मत और विश्वास रख पाने का बल दो
काल के पंजों को रोक जीवन का अमृत विमल दो

भय से है आक्रांत मानव लाश ढोते थक गया है
निर्भय करो अपनी कृपा से मन में आशाएं प्रबल दो

इस आपदा के काल में भी लिप्त हैं जो स्वार्थ में
उनकी आंख में पानी मन में भावनायें सजल दो

माना कि मानव भूल कर बैठा है तुमको भूल कर
किंतु हमको तात हे देकर क्षमा भक्ति अचल दो

तुम जो करोगे अच्छा ही होगा पूर्ण हमें विश्वास है
जैसे तुम्हें लगता उचित वैसे इस मुश्किल का हल दो

सृष्टि क्रंदन कर रही बस इक तुम्हारा आसरा है
अश्रु इसके पोंछ कर सुरभित हंसी निर्मल नवल दो
- शरद कुमार
विषय:
भक्ति और प्रार्थना (30)
कॉरोना और लॉक डाउन (5)

काव्यालय को प्राप्त: 27 Apr 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 7 May 2021

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अन्य राशि
इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
दुष्यन्त कुमार


जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
..

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इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

वाणी मुरारका
इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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