अप्रतिम कविताएँ
स्थगित सपना

हिन्दी अनुवाद


स्थगित सपने का क्या होता है?

क्या वह सूख जाता है
किशमिश जैसे धूप में?
या पकता है घाव सा
फिर रिसता है?
बासता है, जैसे सड़ता गोश्त?
या पपड़ी जम जाती है
चीनी अलग हो जाती है
जैसे चाशनी पर?

शायद वह बस लच जाता है
जैसे भारी बोझ।

या कि होता है विस्फोट?


अंग्रेज़ी मूल


What happens to a dream deferred?

Does it dry up
like a raisin in the sun?
Or fester like a sore—
And then run?
Does it stink like rotten meat?
Or crust and sugar over—
like a syrupy sweet?

Maybe it just sags
like a heavy load.

Or does it explode?


- लैंग्स्टन ह्यूज़
- अनुवाद : वाणी मुरारका

काव्यालय को प्राप्त: 1 Jan 1901. काव्यालय पर प्रकाशित: 21 Aug 2020

***
इस महीने :
'त्र्यम्बक प्रभु को भजें'
अज्ञात


त्र्यम्बक प्रभु को भजे निरन्तर !
जीवन में सुगन्ध भरते प्रभु,
करते पुष्ट देह, अभ्यन्तर !

लता-बन्ध से टूटे, छूटे खरबूजे से
जब हम टूटें, जब हम छूटें मृत्यु-बन्ध से,
पृथक न हों प्रभु के अमृत से !
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'पावन कर दो'
अज्ञात


कवि! मेरा मन पावन कर दो!

हे! रसधार
बहाने वाले,
हे! आनन्द
लुटाने वाले,
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

इन दर्पणों में देखा तो
~ वाणी मुरारका

वर्षों पहले यहाँ कुछ लोग रहते थे। उन्होंने कुछ कृतियां रचीं, जिन्हें 'वेद' कहते हैं। वेद हमारी धरोहर हैं, पर उनके विषय में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानती हूँ। जो जानती हूँ वह शून्य के बराबर है।

फिर एक व्यक्ति ने, अमृत खरे ने, मेरे सामने कुछ दर्पण खड़े कर दिए। उन दर्पणों में वेद की कृतियाँ एक अलग रूप में दिखती हैं, जिसे ग्रहण कर सकती हूँ, जो अपने में सरस और कोमल हैं। पर उससे भी महत्वपूर्ण, अमृत खरे ने जो दर्पण खड़े किए हैं उनमें मैं उन लोगों को देख सकती हूँ जो कोटि-कोटि वर्षों पहले यहाँ रहा करते थे। ये दर्पण वेद की ऋचाओं के काव्यानुवाद हैं, और इनका संकलन है 'श्रुतिछंदा'।

"श्रुतिछंदा" में मुझे दिखती है ...

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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