अप्रतिम कविताएँ
अंतहीन संवाद
आज भी तुम अपनी
झीनी सी मुस्कुराहट ले
मेरे पास आते हो
फिर हौले से
मेरे पहलू में
बैठ जाते हो
शनै: शनै:
मुझ पर स्नेह के पंख
पसारते हो

मैं,
अपेक्षाओं और
आकांक्षाओं के
झंझावत में डूब
तुमको अनदेखा कर देता हूँ

प्रिय,
अगर तुम
अपने को मुझसे बाँट पाते
शायद,
ज़्यादा ना सही
थोड़ा तो दुनियादारी से
उबर पाते!

किसी रोज़
तुम आना
अवसाद को
परे रख
मेरे पहलू
में बस बैठ जाना...

प्रश्नवाचक निगाह
पर अर्ध-विराम लगा,
मुझ तक
पूर्णविराम
की गुंजायश में,
उम्मीदों का सवेरा
और
आज की शाम ही काट जाना

कल की कल देखेंगे
एक उजाले की उम्मीद में
फिर एक बेहतरीन शाम
पर अवसाद के साये
नहीं पड़ने देंगे
- मंजरी गुप्ता पुरवार
Manjari Gupta Purwar: [email protected]
विषय:
प्रेम (60)

काव्यालय को प्राप्त: 26 Oct 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 22 Dec 2023

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 अंतहीन संवाद
 सुर्खियाँ
इस महीने :
'स्वतंत्रता का दीपक'
गोपालसिंह नेपाली


घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है!
..

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इस महीने :
'युद्ध की विभीषिका'
गजेन्द्र सिंह


युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

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इस महीने :
'नव ऊर्जा राग'
भावना सक्सैना


ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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