रोमन लिपि में हिन्दी
roman lipi men Hindi

Vani Murarka



हिन्दी सिर्फ उन्ही लोगों तक सीमित नहीं है जिन्हें हिन्दी पढ़नी आती है| ऐसे कई रसिक हैं जो देवानागरी लिपि या तो जानते नहीं हैं, या पढ़ने से कतराते हैं मगर सुन्दर अभिव्यक्ति पर सहज ही मुग्ध हो जाते हैं| हिन्दी काव्य का रस इन तक क्यों न पहुंचे? जो देवनागरी पढ़ने से कतराते हैं, उनतक हम आगे बढ़ कर क्यों न मिलें?

इस उद्देश्य से काव्यालय पर कविताओं का ऑडियो तो है ही, अब रचनाएँ रोमन (अंग्रेज़ी) लिपि में भी पढ़ी जा सकती हैं|

हिन्दी और देवनागरी की यह बहुत बड़ी खासियत है कि जो लिखा है उससे ही शब्द का क्या उच्चारण होगा स्पष्ट निर्धारित हो जाता है|

रोमन में हिन्दी लिखने में हमें हिन्दी की यह शक्ति खोनी नहीं है| आजकल सुविधा के लिए कई लोग हिन्दी रोमन में लिखते हैं पर फिर किसी शब्द की वर्तनी क्या होगी यह कोई ठीक नहीं रहता| उदाहरण स्वरुप "रहना" को rhna, rahna, rahnaa कई प्रकार से लोग लिखते हैं| मगर हिन्दी की इस शक्ति को हम रोमन में लिख कर भी कायम रख सकते हैं कि जो लिखा हो उससे उच्चारण भी स्पष्ट हो| रोमन लिपि पर आधारित ऐसी कई भाषाएँ हैं (जैसे जर्मन)|

अतः काव्यालय पर जो रचनाएँ रोमन में भी उपलब्ध होंगी, उनका रोमन में भी वर्तनी नियमानुसार होगी| काव्यालय पर रोमन में कोई कविता पढ़ने के लिए कविता के पृष्ठ पर मेन्यु में "English Interface" क्लिक करें|


पता नहीं पाठकों को इस सुविधा की ज़रुरत है कि नहीं, मगर लगा कि शायद इस सुविधा की ज़रूरत है, सिर्फ काव्यालय को ही नहीं बल्कि हिन्दी जगत को भी, तो मैंने इस सुविधा का निर्माण कर दिया|

रोमन लिपि में हिन्दी लिखने के नियमों को एक सॉफ्टवेयर में भी ढाला गया है जिसका कोई भी प्रयोग कर सकता है|


देवनागरी में हिन्दी देने से, सॉफ्टवेयर उसका रोमन देता है| जैसे कि

नयन का नयन से, नमन हो रहा है
लो उषा का आगमन हो रहा है
परत पर परत, चांदनी कट रही है
तभी तो निशा का, गमन हो रहा है

nayan kaa nayan se, naman ho rahaa hai
lo uShaa kaa aagaman ho rahaa hai
parat par parat, chaandanee kaT rahee hai
tabhee to nishaa kaa, gaman ho rahaa hai

अथवा

वर दे, वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव भारत में भर दे।
नव गति नव लय ताल छंद नव
नवल कंठ नव जलद मन्द्र रव
नव नभ के नव विहग वृंद को,
नव पर नव स्वर दे।

var de, veeNaavaadini var de.
priy svatantr rav, amRt mantr nav bhaarat men bhar de.
nav gati nav lay taal chhand nav
naval kanTh nav jalad mandr rav
nav nabh ke nav vihag vRnd ko,
nav par nav svar de.

इस नियम को निश्चित करने में मेरा प्रयास यह है कि बिना नियम जाने भी रोमन में शब्दों को पढ़ने में आम लोगों को कम से कम असुविधा हो| इसमें जहां तक संभव हो आम नज़र आने वाले अक्षरों का ही प्रयोग हो, ऐसा प्रयास किया गया है| यूँ तो कई ज्ञानियों ने रोमन में संस्कृत के लिए ऐसे नियम बनाएं हैं, मगर उनमें अक्षरों में स्वर स्पष्ट करने के लिए विभिन्न चिन्ह लगायें जाते हैं जिनका अर्थ जानना अनिवार्य होता है|

इस सॉफ्टवेयर का प्रयोग आप भी कर सकते हैं अगर आप निर्धारित रूप से किसी हिन्दी रचना या लेख का रोमन में हिन्दी पाना चाहते हों| सॉफ्टवेयर इस लिंक पर उपलब्ध है ...

देवनागरी के अक्षर रोमन में लिखने के लिए मुझे अभी यह नियम तय किया है|


क्योंकि हिन्दी में आख़री अक्षर में अगर अ-कार निहित होता है तो वह अक्षर अक्सर पूरा उच्चारण नहीं किया जाता है, इसलिए शब्द में आख़री अक्षर में अगर अ निहित होगा तो a नहीं लिखा जाएगा| अतः “केवल” को “keval” लिखेंगे और “प्रिय” को “priy”.

इस नियम में दो कमियाँ हैं

1. ड़ और ढ़ के लिए Ḍ और Ḍh, मगर Ḍ ऐसा अक्षर है जो सहजता से किसी कीबोर्ड में लिखने के लिए उपलब्ध नहीं है|

2. न और ं दोनों के लिए n.

इन दोनों कमियों को सुधारने के लिए आपको अगर कोई विकल्प सूझे तो ज़रूर बताइयेगा| ऐसे भी हिन्दी जगत अगर मिलकर एक नियम निर्धारित करे कि हिन्दी को रोमन में किस प्रकार से लिखना है तो अच्छा हो| नियम ऐसा हो कि आम आदमी आसानी से ग्रहण कर सके और रोमन के वही अक्षरों का प्रयोग हो जो कीबोर्ड में आसानी से उपलब्ध हो|

26th August 2016


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इस महीने :
'दिव्य'
गेटे


अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

पूरा काव्य लेख पढ़ने यहाँ क्लिक करें
राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

पूरी कविता देखने और सुनने इस लिंक पर क्लिक करें
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