अप्रतिम कविताएँ
जो हवा में है
जो हवा में है, लहर में है
क्यों नहीं वह बात
        मुझमें है?

शाम कंधों पर लिए अपने
ज़िन्दगी के रू-ब-रू चलना
रोशनी का हमसफ़र होना
उम्र की कन्दील का जलना
आग जो
        जलते सफ़र में है
क्यों नहीं वह बात
        मुझमें है?

रोज़ सूरज की तरह उगना
शिखर पर चढ़ना, उतर जाना
घाटियों में रंग भर जाना
फिर सुरंगों से गुज़र जाना
जो हँसी कच्ची उमर में है
क्यों नहीं वह बात
        मुझमें है?

एक नन्हीं जान चिड़िया का
डाल से उड़कर हवा होना
सात रंगों के लिये दुनिया
वापसी में नींद भर सोना
जो खुला आकाश स्वर में है
क्यों नहीं वह बात
        मुझमें है?
- उमाशंकर तिवारी
Ref: Vagarth, May 1999
Pub: Bharatiya Bhasha Parishad
36A, Shakespeare Sarani, Calcutta

काव्यालय पर प्रकाशित: 1 Jan 1990

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
इस महीने :
'अमरत्व'
क्लेर हार्नर


कब्र पे मेरी बहा ना आँसू
हूँ वहाँ नहीं मैं, सोई ना हूँ।

झोंके हजारों हवाओं की मैं
चमक हीरों-सी हिमकणों की मैं
शरद की गिरती फुहारों में हूँ
फसलों पर पड़ती...
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website