अप्रतिम कविताएँ
जब नींद नहीं आती होगी!
क्या तुम भी सुधि से थके प्राण ले-लेकर अकुलाती होगी!
                       जब नींद नहीं आती होगी!
दिनभर के कार्य-भार से थक जाता होगा जूही-सा तन,
श्रम से कुम्हला जाता होगा मृदु कोकाबेली-सा आनन।
लेकर तन-मन की श्रांति पड़ी होगी जब शय्या पर चंचल,
किस मर्म-वेदना से क्रंदन करता होगा प्रति रोम विकल
आँखों के अम्बर से धीरे-से ओस ढुलक जाती होगी!
                       जब नींद नहीं आती होगी!
जैसे घर में दीपक न जले ले वैसा अंधकार तन में,
अमराई में बोले न पिकी ले वैसा सूनापन मन में,
साथी की डूब रही नौका जो खड़ा देखता हो तट पर -
उसकी-सी लिये विवशता तुम रह-रह जलती होगी कातर।
तुम जाग रही होगी पर जैसे दुनिया सो जाती होगी!
                       जब नींद नहीं आती होगी!
हो छलक उठी निर्जन में काली रात अवश ज्यों अनजाने,
छाया होगा वैसा ही भयकारी उजड़ापन सिरहाने,
जीवन का सपना टूट गया - छूटा अरमानों का सहचर,
अब शेष नहीं होगी प्राणों की क्षुब्ध रुलाई जीवन भर!
क्यों सोच यही तुम चिंताकुल अपने से भय खाती होगी?
                       जब नींद नहीं आती होगी!
- रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'
विषय:
प्रेम (60)
विरह (13)

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अन्य राशि
इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
दुष्यन्त कुमार


जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
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इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

वाणी मुरारका
इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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