घर से दफ़्तर पाँव बढ़ाते
मीटिंग से मीटिंग में जाते
एक हँसी मुख पे चिपकाए
प्लास्टिक वाली हैलो, हाय
ए.सी. में उष्मा ढूँढे मन
खुद को जहाँ-तहाँ ढूँढे मन
कहो सखे अन्वेषण क्षण में
एक सुधि क्या मेरी होगी
एक बिम्ब क्या मेरा होगा
बहना को बिछिया पहनाते
बिटिया को देहरी पुगवाते
बंधन्वारों के झुरमुट से
हृदय-चन्द्र बिलखे सम्पुट से
मन में आशीषें आयेंगीं
कही एक भी ना जायेंगी
कहो सखे उन भावुक पल में
एक दुआ क्या मेरी होगी
एक दीप क्या मेरा होगा
सुख-दुःख के पाटों पर चलते
गिरते, उठते और संभलते
पाँवों को पोखर में धोते
धानों को खेतों में बोते
गीत होठ पर कुछ आयेंगे
मन पे लेप लगा जायेंगे
कहो सखे चन्दन गीतों में
एक पंक्ति क्या मेरी होगी
एक गीत क्या मेरा होगा
कभी गलत कुछ हो जायेगा
मन, मन ही मन अकुलाएगा
प्रहर रात के जब छाएंगे
दुःख कुछ गहरे हो जाएंगे
दिल ढूंढेगा आस किरण को
बिना आंकलन वाले मन को
कहो सखे सच्चे मीतों में
एक वफ़ा क्या मेरी होगी
एक नाम क्या मेरा होगा
घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है!
..
युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?
हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।