अप्रतिम कविताएँ
तुम्हारे लिए
आज भी सूर्य ग्रहण था
फिर वही उदास सूनी साँझ
देख रही थी
हल्की बारिश में
मेरी धमनियों में बहते हुए लहू का जमना
हल्की हल्की बारिश
जो तूफान के बाद भी तूफान के होने का
अहसास करा रही थी
मैं खुद को तलाश रहा था
सब कुछ अस्त व्यस्त था
अतीत के कुछ पन्ने अभी भी
हवा में तैर रहे थे
आधे गीले आधे सूखे
तभी ईश्वर आया
सब कुछ ठहर गया, बारिश भी
मेरी आखें फैली थी प्रभापुंज में
कुछ बज रहा था मेरे कानों में
ईश्वर क्या गाता भी है?
या ये संगीत मेरी आत्मा का है
पता नहीं
उसकी (ईश्वर) कण कण से
झरते प्रकाश से मैंने बनते देखी
एक कृति
नन्ही परी
उसने मुस्कुराते हुए मेरे सर पर हाथ फेरा
हुआ पुलकित प्यार की निर्मल छाया में दग्ध हृदय मेरा
सब कुछ बदल दिया उसने
क्षण भर में
गोया उसकी हँसी न हो
जादूई छड़ी हो
अभी भी रोज़ आती है उदास सूनी साँझ
रोज़ आता है तूफान
रोज़ आती है बारिश
रोज़ तलाशता हूँ मैं अपने आपको
रोज़ लगता है मेरे सूर्य को ग्रहण
पर रोज़ आ जाती है नन्ही परी
अपनी जादूई मुस्कान के साथ
रोज़ मैं मरते मरते जी जाता हूँ
फिर संगीत बज रहा है
क्या ईश्वर गा रहा है
नहीं ये तो नन्ही परी है
मैं जा रहा हूँ उसके पास
कुछ देर के लिए सब कुछ भुलाने
सबसे दूर उसके पास
अपने पास
अलविदा!!!
- सर्वेश शुक्ला
Sarvesh Shukla
email: [email protected]
Sarvesh Shukla
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विषय:
रिश्ते (17)

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भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
..

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कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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