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यादवेन्द्र


यादवेन्द्र द्वारा अनूदित कविताएँ
स्त्री चल देती है चुप चाप - जमाल सुरेया
जन्म 1957 बिहार के आरा शहर में। बिहार के विभिन्न शहरों गाँवों से स्कूली और भागलपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ महीनों के लिए छत्तीसगढ़ के कोरबा में नौकरी। 1980 से लगातार रुड़की के केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान ( CSIR की एक राष्ट्रीय प्रयोगशाला) में वैज्ञानिक के तौर पर काम करने के बाद अंततः निदेशक के तौर पर जून 2017 में कार्यमुक्त हुए।

वैज्ञानिक कर्म के मुख्य विषय : हिमालयी भूस्खलन और भूकम्प का अध्ययन और भवनों पर इसका प्रभाव कम करना , पर्यावरण संरक्षण की दिशा में इंस्ट्रूमेंटेशन का लक्षित हस्तक्षेप और सांस्कृतिक विरासतों का वैज्ञानिक उपादानों के उपयोग से संरक्षण।

वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में प्रचुर लेखन। रविवार, दिनमान, साप्ताहिक हिंदुस्तान, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, अमर उजाला, प्रभात खबर, आविष्कार, साँचा, कादम्बिनी, लोकमत समाचार, समकालीन जनमत इत्यादि में विज्ञान सहित विभिन्न विषयों पर प्रचुर लेखन।

विदेशी समाजों की कविता कहानियों के अंग्रेजी से किये अनुवाद नया ज्ञानोदय, पहल, हंस, कथादेश, वागर्थ, शुक्रवार, अहा जिंदगी, मधुमती, दोआबा जैसी पत्रिकाओं और अनुनाद, कबाड़खाना, लिखो यहाँ वहाँ, ख़्वाब का दर, सेतु साहित्य जैसे साहित्यिक ब्लॉगों में प्रकाशित। मार्च 2017 के स्त्री साहित्य पर केन्द्रित "कथादेश" का अतिथि संपादन।

साहित्य के अलावा सैर सपाटा, सिनेमा और फ़ोटोग्राफ़ी का शौक। भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली से विभिन्न देशों की स्त्री लेखकों की कहानियों का संकलन "तंग गलियों से भी दिखता है आकाश" (2018), संभावना प्रकाशन, हापुड़ से "स्याही की गमक" (2019) और भोपाल की रबींद्रनाथ टैगोर युनिवर्सिटी द्वारा "कविता का विश्व रंग - युद्धोत्तर विश्व कविता के प्रतिनिधि स्वर" तथा "कविता का विश्व रंग - समकालीन विश्व कविता के प्रतिनिधि स्वर" प्रकाशित।


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