काव्यालय के आँकड़े
जुलाई 2019 – जून 2020

वाणी मुरारका, विनोद तिवारी
(सम्पादक, काव्यालय)

कविता द्विज होती है। दो बार, दो बाँसुरी से उसका जन्म होता है। एक बार जब अनुभूति कवि के हृदय की नली सी बाँसुरी से होकर गुज़रती है, तब कविता का जन्म होता है, स्पन्दन को राहत मिलती है। फिर जब वह कविता पाठक के हृदय की नली सी बाँसुरी से होकर गुज़रती है, अनुभूति का स्पन्दन उत्पन्न हो तो कविता का फिर एक नया जन्म होता है, स्पन्दन को विस्तार मिलता है। अनुभूति से जन्मी, पाठक-मन के अनन्त अनुभूति सागर में फिर से जनमना कविता की सार्थकता है।

सार्थकता की यह यात्रा यथार्थ से होकर गुज़रती है। प्रस्तुत है काव्यालय की गतिविधि का वार्षिक रिपोर्ट, जुलाई 2019 से जून 2020 का संक्षिप्त ब्यौरा --

विशेष समर्पण

“उसको” और आपको इस वर्ष काव्यालय का विशेष समर्पण, पुस्तक समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न, विनोद तिवारी की कविताओं का संकलन, वाणी मुरारका की चित्रकारी के संग। इस साल यह काव्यालय की सबसे विशेष खबर भी है क्योंकि यह हमारा पहला पुस्तक प्रकाशन है। इसका मुद्रित और ई-बुक संस्करण, दोनों उपलब्ध हैं। --

31 अगस्त 2020 तक इस पुस्तक से प्राप्त रकम का 50% प्रतिशत कोविड-राहत गूंज को डोनेट किया जाएगा। शेष इस पुस्तक से प्राप्त सारी राशि काव्यालय के खर्च के लिए है।

तकनीकी विकास

काव्यालय का एप
काव्यालय को आप अपने फोन अथवा लैपटॉप कम्प्यूटर पर अब एक एप के जैसे भी रख सकते हैं।

फोन पर इसके लिए इस लिंक पर पधारें। ऐसा स्क्रीन दिखेगा। नीचे “Add To Home Screen” बटन पर क्लिक करें। काव्यालय का आयकॉन आपके फोन पर आ जाएगा।


संग्रह खोजने की सुविधा
काव्यालय के संग्रह को खोजने की सुविधा भी अब उपलब्ध है – कवि का नाम, कविता का शीर्षक, और कविता के शब्द से। यह सर्च देवनागरी और रोमन (अंग्रेजी) लिपि दोनों में काम करता है। परिणाम देवनागरी में बेहतर मिलेंगे।


मेलगन द्वारा ईमेल प्रेशित
काव्यालय के नियमित पाठकों को ईमेल द्वारा काव्यालय की प्रस्तुति पहले “Mailchimp” द्वारा भेजी जाती थी। अब इस साल जनवरी से हम ईमेल “Mailgun” से भेज रहे हैं। इससे मासिक खर्च में काफी बचत हुई है, हालांकि इसके लिए हमें अपना बहुत कोडिंग करना पड़ा। Mailchimp के प्रयोग में न-के-बराबर कोडिंग की आवश्यकता होती है और कई सुविधाएँ उपलब्ध हैं। किन्तु इसके अनुरूप उनका शुल्क भी है। खर्च के अनुकूल पाठकों से आर्थिक योगदान नहीं मिल रहा था, इसलिए मासिक खर्च कम करने का उपाय करना पड़ा।

प्रकाशन के आंकड़े

जुलाए 2019 – जून 2020 की अवधि में हमारी कुल 3५ प्रस्तुतियों के स्रोत और प्रकार यह थे। लिंक पर क्लिक करके आप उनकी सूची देख सकते हैं, उन रचनाओं का पुन: रसास्वादन कर सकते हैं।

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कुल प्रस्तुति 35

प्रस्तुति के स्रोत

प्रस्तुतियों के प्रकार

पाठकों के आंकड़े

काव्यालय की प्रस्तुतियाँ करीबन 2600 पाठकों को ईमेल पर नियमित भेजी जाती हैं। ईमेल ही हमारा सम्प्रेषण का मुख्य माध्यम है। इस साल की प्रस्तुतियों का ईमेल पर यह रीडरशिप रहा –

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यह है वेबसाइट पर आगन्तुकों के आँखड़े --

पैसों की बात

इस अवधि में आपने जो आर्थिक योगदान दिया यह आपका काव्यालय के प्रति उनके स्नेह और सम्मान का द्योतक है। आप सभी को धन्यवाद। आपके सहयोग से व्यावहारिक ऊर्जा तो मिलती ही है, साथ ही यह विश्वास होता है कि नि:सन्देह काव्यकला का पोषक तत्व कई पाठकों तक पहुँच सकता है।

इस वर्ष (जुलाई 2019 - जून 2020)

सहयोग देने वाले पाठकगण : 32

खर्च आय
ईमेल ₹ 7,820 आपसे प्राप्त योगदान ₹ 16,250
वेब होस्टिंग ₹ 6,126 एमज़ॉन से कमिशन ₹ 1,010
कुछ कोडिंग, प्रोग्रामर संदीप रावत ₹ 15,500 पुस्तक की बिक्री ₹ 3,210
पुस्तक मुद्रण व अन्य निर्माण ₹ 35,000 पुस्तक के लिए विशेष अनुदान ₹ 35,080
कुल आय ₹ 55,500
कमी ₹ 8,896
कुल ₹ 64,446कुल₹ 64,446

रचनाओं का मूल्य, काव्यालय के सम्पादन में लगे वक्त, तकनीकी मेहनत का मूल्य नहीं जोड़ा गया है। सभी रचनाकार हमें नि:शुल्क अपनी प्रतिभा का उपहार देते हैं। काव्यालय कुटुम्ब के संचालन का कार्य भी नि:शुल्क है।

हमारा उद्देश्य है कि सौन्दर्य के द्वारा, एक व्यापक विस्तृत आयाम का आभास हो। मीडिया और इन्टरनेट के शोर के बीच शान्ति और सुकून की सरिता बहे। यह अलौकिक अनुभूति और कई मित्रों तक पहुँचे। और यह सब विज्ञापनों के विकर्षण के बिना हो।

इस उद्देश्य को ऊर्जा देने के लिये
अप्रतिम अनुभूति में डूबने के लिये "समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न"
अथवा आर्थिक सहयोग दें --

प्रकाशित: 7 अगस्त 2020


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इस महीने :
'अन्त'
दिव्या ओंकारी ’गरिमा’


झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।

झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।

तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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