अप्रतिम कविताएँ
देख यायावर!
तुझे दरिया बुलाते हैं,
बूँदों के हार लेकर।
तुझे अडिग पर्वत बुलाते हैं,
हिम कणों का भार लेकर।
देख यायावर! तू ठहरना नहीं,
जब तलक वादियाँ मिल जाए न।
देख यायावर! तू ठहरना नहीं,
जब तलक आँख अनिमेष ठहर जाए न।
देख छूती नभ में जलद को,
देवदारु की पंक्तियाँ।
देख होती घाटियों में परिवर्तित,
इन श्रृंखलाओं की विभक्तियाँ।
हो रही है निछावर,
जहाँ प्रकृति जी जान से।
तृप्त हो जाता है हृदय,
सुन निर्झर की मधु तान से।
देख यायावर! ये वही महान् हैं,
हिमालय की ये श्रृंखलाएँ,
विश्व में बढा़ती शान हैं।

देख यायावर! ये दनुज सी लहरें,
जाने तुझसे क्या कह रहीं।
अथाह जलराशि इन दरियाओं में,
चिरकाल से है बह रहीं।
है समेटे हुए एक पूरा ही विश्व,
यह अपने आप में।
रहस्यों की विविध गर्तें,
ले रहा है अपने साथ में।
बैठकर इसके तट पर हे यायावर!
करना मनन उस रचनाकार का।
किया अद्भुत ये ब्रह्मांड साकार,
धन्यवाद देना उस निराकार का।
- सोनू हंस
यायावर: अश्वमेध का घोड़ा, खानाबदोश, nomad; अनिमेष: अपलक; जलद: बादल; दनुज: दानव
Email: [email protected]

काव्यालय को प्राप्त: 1 Jul 2017. काव्यालय पर प्रकाशित: 3 Aug 2017

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गेटे


अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

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राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

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