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'साँझ फागुन की'
रामानुज त्रिपाठी
फिर कहीं मधुमास की पदचाप सुन,
डाल मेंहदी की लजीली हो गई।
दूर तक अमराइयों, वनवीथियों में
लगी संदल हवा चुपके पाँव रखने,
रात-दिन फिर कान आहट पर लगाए
लगा महुआ गंध की बोली परखने
दिवस मादक होश खोए लग रहे,
साँझ फागुन की नशीली हो गई।
हँसी शाखों पर कुँवारी मंजरी
...
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
'यूँ छेड़ कर धुन'
कमलेश पाण्डे 'शज़र'
यूँ छेड़ कर धुन कोई सुमधुर रुक गया
कि मैं विवश सा गुनगुनाता रहा
सारी रात
उस छूटे हुए टूटे हुए सुर को
सुनहरी पंक्तियों के वस्त्र पहनाता रहा
गाता रहा
यूँ छेड़ कर धुन कोई सुमधुर रुक गया
कि मैं मानस की दीवारों पर
...
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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Basic Structure of Hindi Poetry
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शिलाधार
- 20वी सदी के पूर्व हिन्दी का शिलाधार काव्य
युगवाणी
- 20वी सदी के प्रारम्भ से समकालीन काव्य
नव-कुसुम
- उभरते कवियों की रचनाएँ
काव्य-सेतु
- अन्य भाषाओं के काव्य से जोड़ती हुई रचनाएँ
मुक्तक
- मोती समान पंक्तियों का चयन
प्रतिध्वनि
कविताओं का ऑडियो: कवि की अपनी आवाज़ में, या अन्य कलाकार द्वारा
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प्रकाशन का समयक्रम:
सामान्यतः महीने का प्रथम और तीसरा शुक्रवार
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