अप्रतिम कविताएँ
प्रेम गाथा
एक था काले मुँह का बंदर
वह बंदर था बड़ा सिकंदर।

उसकी दोस्त थी एक छुछुंदर
वह थी चांद सरीखी सुंदर।

दोनो गये बाग़ के अंदर
उन्होंने खाया एक चुकंदर।

वहाँ खड़ा था एक मुछंदर
वह था पूरा मस्त कलंदर।

उसने मारा ऐसा मंतर
बाग़ बन गया एक समुंदर।

उसमें आया बड़ा बवंडर
पानी में बह गया मुछंदर।

एक डाल पर लटका बंदर
बंदर पर चढ़ गयी छ्छुंदर।

इतनी ज़ोर से कूदा बंदर
वे दोनो आ गये जलंधर।

ता-तेइ करके नाचा बदंर
कथक करने लगी छछुंदर।

ऐसे दोनो दोस्त धुरंधर
हँसते गाते रहे निरंतर।
- विनोद तिवारी
काव्य संकलन समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न

काव्यालय को प्राप्त: 1 Jan 2013. काव्यालय पर प्रकाशित: 20 Apr 2018

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झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।

झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।

तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..

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