अप्रतिम कविताएँ
एक आशीर्वाद
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।
हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
- दुष्यन्त कुमार
Contributed by: Ruchi Varshneya

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झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।

झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।

तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..

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